
फेस्टिव सीजन में अगर आप ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म खोलें तो हर तरफ एक ऑफर नजर आता है- No Cost EMI. मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज या वॉशिंग मशीन… हर जगह आपको यह ऑफर लुभाता है.
फेस्टिव सीजन में अगर आप ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म खोलें तो हर तरफ एक ऑफर नजर आता है- No Cost EMI. मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज या वॉशिंग मशीन… हर जगह आपको यह ऑफर लुभाता है. सुनने में तो यह अट्रैक्टिव लगता है कि आसान किस्तों में महंगे प्रोडक्ट्स खरीदना वो भी बिना ब्याज के. लेकिन क्या यह वाकई फ्री ऑफर है या फिर इसके पीछे छुपा है कोई बड़ा झोल? एक्सपर्ट्स की मानें तो असली खेल कुछ और ही है.
टैक्समैनेजर.इन के फाउंडर और सीईओ दीपक कुमार जैन बताते हैं कि तकनीकी रूप से नो-कॉस्ट ईएमआई पूरी तरह फ्री नहीं होती. बैंक तो हमेशा ब्याज लेता है, लेकिन या तो ब्रांड उस ब्याज का खर्च सब्सिडी के तौर पर खुद उठा लेता है या फिर प्रोडक्ट की कीमत एडजस्ट करके ग्राहक से अप्रत्यक्ष रूप से वसूल लिया जाता है.
कैसे काम करता है यह ऑफर?
डिस्काउंट या सब्सिडी मॉडल- मान लीजिए आपने 30,000 रुपये का स्मार्टफोन EMI पर खरीदा. सामान्य EMI में कुल लागत 31,800 रुपये पड़ती. लेकिन ब्रांड 1800 रुपये का ब्याज डिस्काउंट में एडजस्ट कर देता है. ऐसे में आपको लगता है आपने सिर्फ 30,000 रुपये चुकाया.
छिपा हुआ ब्याज- कई बार ईएमआई पर प्रोडक्ट बिना किसी डिस्काउंट के 30,000 रुपये में मिलता है, जबकि कैश पेमेंट पर वही 27,000 रुपये में मिल जाता. इस तरह आप सीधा डिस्काउंट खो देते हैं और ब्याज इनडायरेक्ट तरीके से चुका देते हैं.
RBI की सख्ती
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2013 में साफ कहा था कि नो-कॉस्ट ईएमआई में ब्याज शून्य दिखाना भ्रामक हो सकता है. इसके बाद बैंकों और NBFCs ने स्कीम को नया रूप दिया. अब ग्राहक को तो नो कॉस्ट का अनुभव मिलता है, लेकिन असल में खर्च कहीं न कहीं एडजस्ट होता ही है.
ग्राहक किन बातों पर ध्यान दें?
* MRP और सेलिंग प्राइस चेक करें– कहीं कीमत बढ़ाकर EMI का झांसा तो नहीं दिया जा रहा?
* ऑफर्स की तुलना करें- कई बार सीधा डिस्काउंट EMI से ज्यादा फायदेमंद साबित होता है.
* प्रोसेसिंग फीस– कुछ बैंकों में यह छिपा चार्ज होता है.
* टेन्योर और प्री-पेमेंट पेनल्टी– समय से पहले कर्ज चुकाने पर अतिरिक्त चार्ज लग सकता है.